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बीसवाँ सूक्त
कर्म और उपलब्धिका सूक्त
[ ऋषि आध्यात्मिक ऐश्वर्यकी ऐसी अवस्थाकी कामना करता है जो भागवत क्रियासे भरपूर हो और जिसमें कोई भी चीज विभाजन और कुटिलताके गर्तमें न गिरने पाए । इस प्रकार अपने कार्योंसे भागवत शक्तिको अपने अन्दर प्रतिदिन संवर्धित करते हुए हम परम आनन्द एवं सत्य, प्रकाशका आनन्दोल्लास एवं शक्तिका हर्षोन्माद प्राप्त कर लेंगे । ] १ यमग्ने वाजसातम त्वं चिन्यन्यसे रयिम् । तं नो गीर्भि: श्रवाय्यं देवत्रा पनया दुजम् ।।
(अग्ने) हे दिव्य संकल्प ! ( वाजसातम) हे हमारी ऐश्वर्य-प्रचुरताके विजेता ! ( यं रयिं) जिस परम आनन्दको ( त्वं चित् मन्यसे) अकेला तू ही अपने मनके अन्दर विचारमें ला सकता है ( तं) उसे (न:) हमारे (गीर्भि:) स्तुति-वचनोंके द्वारा (श्रवाय्मं) अन्त:प्रेरणाओंसे भर दे और (युजम्) हमारा सहायक बनकर उसे ( देवत्रा) देवताओंमें (पनय) क्रिया-शील बना दे । २ ये अग्ने नेरयन्ति ते वृद्धा उग्रस्य शवस: । अप द्वेषो अप ह्नरोऽन्यव्रतस्य सश्चिरे ।।
(अग्ने) हे संकल्पाग्ने ! (ये) तेरी जो शक्तियां (ते उग्रस्य शवस: वृद्धा:) तेरी ज्वाला और बलकी उग्रतामें तेरे द्वारा संवर्धित होकर भी हमें (त ईरयन्ति) मार्गपर चलनेके लिए प्रेरित नहीं करतीं, वे (द्वेष: अप सश्चिरे) दूर हटकर द्वैधभावमें ग्रस्त हो जाती हैं और (अन्यव्रतस्य ह्रर:) तेरे नियमसे भिन्न किसी नियमकी कुटिलताके साथ ( अप [ सश्चिरे ] ) चिपट जाती हैं । ३-४ होतारं त्यावृणीमहेडग्ने दक्षस्य साधनम् । यज्ञेषु पूज्यं गिरा प्रयस्वन्तो हवामहे ।। १०२ कर्म और उपलव्धिका सूक्त
इत्था यथा त ऊतये सहसावन् दिवेदिवे । राय ऋताय सुक्तो गोभि: ष्याम सधमादो वीरै: स्याम सधमाद: ।।
(अग्ने) हे संकल्पशक्ते ! हम (त्वा) तुझे (होतारं) हविरूप भेंटोंके पुरोहित और (दक्षस्य साधनम्) विवेकयुक्त ज्ञानके संसाधकके रूपमें (वृणीमहे) अपने लिए वरण करते हैं । (प्रयस्वन्त:) तेरे लिए अपने सारे आनन्दोंको धारण किये हुए हम (यज्ञेषु) यज्ञोंमें (गिरा) अपने स्तुति-वचनसे तुझ (पूर्व्य) सनातन और परमका (हवामहे) आह्वान करते हैं ।
(यथा इत्था हवामहे) ठीक तरहसे और इस प्रकार आह्वान करते हैं कि (सहसावन्) हे शक्तिशाली देव ! (सुक्त्रो) हे पूर्ण कार्यसाधक शक्ति ! हम (दिवे-दिवे) दिन-प्रतिदिन (ते ऊतये) तुझे बढ़ाएँ, ताकि हम (राये) परम आनन्द प्राप्त कर सकें, (ऋताय) सत्य उपलब्ध कर सकें, (गोभि:) ज्ञानकी रश्मियोंके द्वारा (सधमाद: स्याम) पूर्ण आनन्दोल्लास अधिगत कर सकें और (वीरै: सधमाद: स्याम) शक्तिरूप वीरोंके द्वारा पूर्ण आनन्दोन्माद प्राप्त कर सकें । १०३
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